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छठ पूजा भगवान भास्कर को समर्पित लोक आस्था का महापर्व है। बिहार का यह पवित्र पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है।
छठ पर्व सूर्य की उपासना का पर्व है, इसलिए इसे सूर्य षष्ठी व्रत के नाम से भी जाना जाता है।
इस व्रत का आरंभ षष्ठी तिथि को होता है जिसमे भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन षष्ठी मैय्या की पूजा होती है इसलिए इसे छठ व्रत के नाम से जाना जाता है।
यह चार दिनों का पर्व होता है और यह चतुर्थी से ही शुरू होकर सप्तमी की सबुह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ खत्म होता है।
ऐसा माना जाता है कि इन दिनों में सूर्य देव और छठी मईया की अराधना करने से व्रती को सुख, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। षष्ठी देवी की पूजा से संतान को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु होने का आशीर्वाद भी मिलता है।
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इस साल ये चार दिन 28 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक मनाया जाएगा।
छठ पूजा में ठेकुआ, ईख, सेब, केला, अदरक, मूली, गाजर, हल्दी जैसी गुणकारी फल एवं सब्जियों से अर्घ्य दिया जाता है, जो मुख्य प्रसाद और स्वास्थ्य के लिए लाभदायक भी हैं।
गाय की घी का दीप पूरी रात जलाई जाती है जिससे वातावरण शुद्ध होता है और हवन से जीवाणुओं का नाश होता है।
प्राचीन मान्यता
छठ की पौराणिक कथाओं का संबंध रामायण से बताया जाता है। दशहरे के दिन रावण वध के बाद श्रीराम 14 साल बाद अयोध्या लौटे थे और अयोध्या में दिवाली के छठे दिन सरयू नदी के तट पर अपनी पत्नी सीता के साथ षष्ठी व्रत रखकर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया था। इसके अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद उन्होंने राजकाज संभाला था।
यह भी मान्याता है कि जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाट हार गए थे तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था और माना जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से उनकी मनोकामना पूरी हुई।
महाभारतकाल में दानवीर सूर्यपुत्र कर्ण घंटो तक जल में खड़े होकर भगवान भास्कर की रोज आराधना करते थे । कर्ण उस समय “अंग” देश के राजा थे । “अंग” देश जो कि वर्तमान में बिहार के भागलपुर के पास स्तिथ है ।

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चार दिन का महापर्व “छठ”
यह चार दिनों का पर्व है, जिसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होती है और कार्तिक शुक्ल सप्तमी को इस पर्व का समापन होता है।
1. नहाय खाय
नहाय खाय के दिन व्रती नदी या तालाब में स्नान कर कच्चे चावल का भात, चनादाल और कद्दू (लौकी) प्रसाद के रूप में बनाकर ग्रहण करती हैं. इस भोजन को बहुत ही शुद्ध और पवित्र माना जाता है. इस दिन एक समय नमक वाला भोजन किया जाता है. मूल रूप से नहाए खाए का संबंध शुद्धता से है. इसमें व्रती खुद को सात्विक और पवित्र कर छठ का व्रत रखते है।
2. खरना
इस दिन महिलाएं और छठ व्रती सुबह स्नान करके साफ सुथरे वस्त्र धारण करती हैं और नाक से माथे के मांग तक सिंदूर लगाती है।
खरना के दिन व्रती दिन भर व्रत रखती हैं और शुद्ध मन से सूर्य देव और छठ मां की पूजा करके व्रती अपने हाथों से पिसे गए गेहूं के आटे के पुरी घी में तली हुई और साठी के चावल, गुड़ की खीर बनाकर प्रसाद तैयार करती हैं. फिर सूर्य भगवान की पूजा करने के बाद व्रती महिलाएं इस प्रसाद को ग्रहण करती है।
खरना का प्रसाद काफी शुद्ध तरीके से बनाया जाता है. खरना के दिन जो प्रसाद बनता है, उसे नए चूल्हे पर बनाया जाता है. व्रती इस खीर का प्रसाद अपने हाथों से ही पकाती हैं. उनके खाने के बाद ये प्रसाद घर के बाकी सदस्यों में बांटा जाता है।
इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद ही व्रती महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है. ऐसा माना जाता है कि खरना पूजा के बाद ही घर में देवी षष्ठी (छठी मइया) का आगमन हो जाता है।
3. संध्या अर्घ्य / शुक्ल षष्ठी
संध्या अर्घ्य के दिन व्रती पूरे दिन निराहार और निर्जला रहती है. इसके बाद शाम को नदी या तालाब में स्नान आदि करने के बाद सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है।
शाम में डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर सूर्य के साथ-साथ देवी प्रत्युषा की भी उपासना की जाती है. ऐसा करने से व्रती की मनोकामना तुरंत पूरी हो जाती है.
इस दिन बाँस की टोकरी में फलों, ईख, सेब, केला, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि से अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और नदी, तालाब या पोखर के किनारे सूर्य देव को जल और दूध से अर्घ्य दिया जाता है। इसके साथ ही प्रसाद भरे सूप से छठी मैया की पूजा की जाती है। शाम को घर लौटने के बाद रात में छठी माता के गीत गाए जाते हैं और व्रत कथा सुनी जाती है।
इस दिन पूरा परिवार घाट पर पहुंचता है और सूर्य देवता और छठी मैया की अराधना करता है।
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4. उगते सूर्य का अर्घ्य
महापर्व के चौथे दिन यानी सप्तमी के सुबह सूर्योदय से पहले जलस्रोत के पास पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता। इसके बाद छठ माता से संतान की रक्षा और पूरे परिवार की सुख शांति का वर मांगा जाता है। अंतिम में घाट पर हवन करके छठ माई की विदाई की जाती है । पूजा के बाद व्रती थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूरा करते हैं, जिसे पारण या परना कहा जाता है।
पूजा के समाप्त होने के बाद सभी परिवार प्रसाद ग्रहण करते है और अपने परोसी, रिश्तेदारों को भी भेजते है !
छठ महापर्व की समाप्ति के साथ ही फिर से अगले वर्ष की छठ पूजा की इंतजार शुरू हो जाती है !
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